Hymn No. 3344
| Date: 22-Mar-1999
अनहोनी को होते हुए देखता हूँ
अनहोनी को होते हुए देखता हूँ,
जो ना हो सके मुझसे, वैसे काम मैं करता रहता हूँ,
फिर भी ऐ खुदा, तेरे विश्वास का सदाबाहर फूल दिलमें नहीं खिला पाता हूँ।
आये कुछ नया काज, तो अक्षर सोचने बैठ जाता हूँ ,
कैसे होगा पूरा, कैसे करुँगा यही सोचमें, मैं रह जाता हूँ ।
पता नहीं क्यों? पर मैं तो ऐसा हूँ,
कहता हूँ तुझसे सच-सच, कि जीवनमें मैं ऐसा करता रहता हूँ ।
यकीन है तुझपर मुझे, पर इस यकीन को बरकरार रख नहीं पाता हूँ,
जब कभी तूफान को उठते देखता हूँ, तो ड़गमगा जाता हूँ,
रह नहीं पाता तेरे भरोसे, अपने आपको बचाने की सोचता हूँ ।
- संत श्री अल्पा माँ