कर्ज कम करने आया हूँ, कर्ज बढ़ता जाता है,
वो अलग बात है खर्चा पानी अपना तू चलाता है ।
पहले से ही दबा हुआ ऊपर से वजन बढ़ता जाता है,
वो अलग बात है कभी कभी तू मेरा वजन झेल लेता है ।
ये वक्त के सितम हैं या कर्मो का, पता नहीं चलता है,
के चलते चलते राह में हमें तू चव्वनी दिखाता है ।
खाली पेट उठते हैं, पर खाली पेट तू सोने नहीं देता है ।
वो अलग बात है कि तू हमें उठाना चाहता रहता है ।
- संत श्री अल्पा माँ