कब से रो रही हूँ, किसी को देखने की फुरसत नहीं है,
चाहूँ मैं जिसको मिलना, निगाहें चार उससे होती नहीं हैं,
वो प्यार भरी नज़र, नजरों के सामने क्यों आती नहीं हैं ।
- संत श्री अल्पा माँ
कब से रो रही हूँ, किसी को देखने की फुरसत नहीं है,
चाहूँ मैं जिसको मिलना, निगाहें चार उससे होती नहीं हैं,
वो प्यार भरी नज़र, नजरों के सामने क्यों आती नहीं हैं ।
- संत श्री अल्पा माँ