हैं दिल की क्या मजबूरी जो (वो) दिल ही जानता है |
वफ़ा निभाने औरों की जाता है,
वफ़ादारी अपने संग करना भूल ही जाता है |
- संत श्री अल्पा माँ
हैं दिल की क्या मजबूरी जो (वो) दिल ही जानता है |
वफ़ा निभाने औरों की जाता है,
वफ़ादारी अपने संग करना भूल ही जाता है |
- संत श्री अल्पा माँ