View Hymn (Bhajan)
Hymn No. 4115 | Date: 05-May-20012001-05-052001-05-05खयालों और ख्वाईशों के साज जो छेड़ते रहते हैंSant Sri Apla Mahttps://www.mydivinelove.org/bhajan/default.aspx?title=khayalom-aura-khvaishom-ke-saja-jo-chhedate-rahate-haiखयालों और ख्वाईशों के साज जो छेड़ते रहते हैं,
नगमें उनके ही उनको नचाते रहते हैं ।
अपने आपको ही जान नहीं पाते है, वो जमाने को जानने की कसमें खाते हैं,
क्या सताये कोई और उनको, जो खुद ही खुद के दुश्मन बन जाते हैं ।
खुदाई को जाने बिना, कुछ पाये बिना, खुद को खुदा कहते हैं,
अपने अरमानों के शोलों तले जो सदा सोये रहते हैं,
क्या जानेंगे औरों के दुःख दर्द को, जहाँ मतलब भरा व्यवहार होता है,
क्या करेंगे फिक्र वो सबकी, जहाँ ना किसीकी खबर होती है,
देखने की और चलने की जीन की चाल सदा अलग होती है,
व्यवहार और बर्ताव ना कभी एक होता है कि वो बडे बेचारे होते है ।
खयालों और ख्वाईशों के साज जो छेड़ते रहते हैं