View Hymn (Bhajan)
Hymn No. 2247 | Date: 12-Sep-19971997-09-121997-09-12वही नादानी, वही नासमझी, ना बदली इसमें कुछ आती है।Sant Sri Apla Mahttps://www.mydivinelove.org/bhajan/default.aspx?title=vahi-nadani-vahi-nasamaji-na-badali-isamem-kuchha-ati-haiवही नादानी, वही नासमझी, ना बदली इसमें कुछ आती है।
होते है सिर्फ लब्ज नए-नए, बाकी हरकतें वही पुरानी होती है।
तकरार पर तकरार होती है, सिर्फ इकरारवाली बात नही होती है।
बेवकुफी से भरा वर्तन हम किए जाते है और उसे ठीक मान बैठते है।
नहीं बैठ पाते है खुद चैन से, ना ही औरों को चैन से बैठने देते है।
अपना किया आप तो भुगतते है, पर औरों को भी मजबूर हम कर देते है।
तोड़कर दिलों को अपनेआप से, उन्हें हम बहुत दूर कर देते है।
नहीं मिलता इसमें हमें कुछ भी, पर इस बात का पता नही चलता है।
बदले तो कैसे बदले अपनेआप को, के अपना वर्तन छोड़ नही पाते है।
समता और समानता को अपनाने कि जगह विषमता को बढ़ावा देते है।
वही नादानी, वही नासमझी, ना बदली इसमें कुछ आती है।