View Hymn (Bhajan)
Hymn No. 4122 | Date: 25-May-20012001-05-252001-05-25यादों और वादों के दंगल में मैं फँसता जा रहा हूँSant Sri Apla Mahttps://www.mydivinelove.org/bhajan/default.aspx?title=yadom-aura-vadom-ke-dangala-mem-maim-phansata-ja-raha-humयादों और वादों के दंगल में मैं फँसता जा रहा हूँ,
कौन बचाये मुझे कि खुद ही उस ओर जा रहा हूँ ।
अंजान हूँ खुद से कि नहीं यही जानना चाह रहा हूँ,
चहरे पर मुस्कुराहट सजाये मैं घूम रहा हूँ ।
ना जाने अपने कितने कर्ज, कितने कर्म भूले जा रहा हूँ,
आज और कल के बीच में मैं खेलता जा रहा हूँ ।
कुछ पता नहीं यही पता है कि, क्या कर रहा हूँ,
कभी अपने आपसे तो कभी किसीसे ड़र रहा हूँ ।
अंजाम की तो बात क्या करुँ कि खामोश वहाँ रहा हूँ,
ज़िंदगी अपनी मैं ना जाने क्यों खोये जा रहा हूँ ।
यादों और वादों के दंगल में मैं फँसता जा रहा हूँ