View Hymn (Bhajan)
Hymn No. 559 | Date: 11-Dec-19931993-12-111993-12-11उलझन ही उलझन है दिल में हमारे, उलझन में उलझते चले जाते हैSant Sri Apla Mahttps://www.mydivinelove.org/bhajan/default.aspx?title=ulajana-hi-ulajana-hai-dila-mem-hamare-ulajana-mem-ulajate-chale-jateउलझन ही उलझन है दिल में हमारे, उलझन में उलझते चले जाते है,
सुलझन को उलझन समझकर, अब हम ना कुछ कर पाते है।
ये कैसी डोर है जिसमें बँधे ही बँधे चले हम जाते है,
कोशिश करते है जब छूटने की जैसे, वैसे ही बंधन बढ़ जाते है।
ये कैसी राह है जिसमें हम खोते ही चले जाते है, उलझते चले जाते है,
दर्द भरे है जीवन के नगमे, सुलझन हम उनमें ढूँढ़ते है।
कभी हँसकर, तो कभी रोकर लब पर नये नगमे सजाए रहते है,
नहीं हारते हिंमत अपनी, पर मजबुर हम हो जाते है।
नही बच पाता है कोई उलझन से ये, जन-जन को घेर लेती है,
विचार और वर्तन हमारे नये-नये धागे बुनते जाते है।
फँस जाते है पूरे हम, तब सुलझाने की बात करते है,
नही रहती हिंमत जब दिल में, तब दम तोड़ने की बात हम करते है।
उलझन ही उलझन है दिल में हमारे, उलझन में उलझते चले जाते है